समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं – Delhi Poetry Slam

समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

By Abhinav Kathuria

समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं
बूँद बूँद कर खर्च करूँगा एक अपने हिस्से की एक तुम्हारे हिस्से की
फ़िर दोनो जुड़कर समुंदर में मिल जानी हैं, 
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

तन्हाई है कुछ उदासी आनी जानी है आती जाती मुश्किलें जीवन की निशानी हैं
कुछ तुम्हारे हिस्से की कुछ मेरे हिस्से की मुट्ठी से रेत की तरह फ़िसल जानी हैं,
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

अँधेरी है रात यही तो इसकी निशानी है भोर की पहली किरण से ये दूर कहीं छट जानी है 
इन्तज़ार की इक घड़ी तुम्हारी इक मेरी पहेली हर तूफ़ान की मिलकर यूँही सुलझानी है,
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

गतिशीलता आधार है जीवन का रुकना मृत्यु की निशानी है 
परिवर्तन से सीखता वही जिसने आगे बढ़ने की ठानी है
परिवर्तित एक साथी मैं एक तुम बदलते समय की निशानी हैं,
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

ना आदी ना अंत इसकी निरंतर जवानी है 
पहर दर पहर लहर दर लहर यही इसकी निशानी है
इस लहर पर सवार एक मैं एक तुम लहर फ़िर ये कहीं खो जानी है,
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

सागर ना भी बुलाये लहर लौट वापस आती है
बीती यादों को ज़िन्दगी रुक रुक कर दोहराती है
ख़ुशनुमा याद सी एक याद मैं एक तुम 
बनके हमसफ़र इस क़ाफ़िले से जुड़ जानी हैं,
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

समय खिलौनों का भी आता है टूट जाते हैं
रिश्तों के मेले ज़िंदगी के रेले में कहीं पीछे छूट जाते हैं
नये मेले की आशा नई उम्मीद नई अभिलाषा
हर नई ज़िंदगी एक नई कहानी है,
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

साथी ना हो तो खेल क्या खेलूँ खेल खटकता है
खिलौने तो ख़रीद लूँगा पर खिलौनों से भी कहीं जी बहलता है
तुमसे खेल में हार जाने की यादें अब भी बाकी हैं
शह और मात की एक बाज़ी फ़िर से जमानी है
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

ज़िंदगी हाथ की रेखाओं में तो नहीं
शामिल है मेरी सुबहों में मेरी शामों में
रात के आग़ोश में दूरियों के दायरे सभी सिमट जाते हैं
लहरों सी फ़िर बहती हैं यादें कुछ खट्टी तो कुछ मीठी बातें
बातों और यादों के भँवर में फ़िर जवाँ रात बितानी है
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

बर्फ़ सी हथेलियों पे अंगार से सुलगते हैं
छूता हूँ जब सितार के तारों सा 
झनझनाता है ये दिल मेरा या शैतान चीतकारता है
धड़कते भड़कते इस लावे में जिस्मों की आग बुझानी है
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

आग से खेलता हूँ हाथ जलने का डर नही मुझे
दहकते शोले दबे हैं मन में कहीं
शायद राख हो जाने से भी परहेज़ नही मुझे
ना जीवन से प्रेम ना मृत्यु का भय ख्वाहिश बस बहते जाने की है
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

सदियों के गुज़रे पलों को मैंने खून से है सींचा
ये मेरे पन्नों की बनती बिगड़ती कहानी है
मन के गहरे अंधेरों में दफ़्न
राज़ों से आज़ाद ये ज़िंदगी बितानी है
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

आज कुछ पन्ने फ़िर पलटकर आए हैं
कुछ मुस्कुराहट छोड़ गए कुछ बेवफ़ा यादें लाए हैं
जुड़वा आँखों से एक ख़ुशी एक ग़म का साया लाए हैं
आँखों में नमी है बनी रहने दो 
इस नमी से फ़िर कुछ रोशनाई(लिखने की स्याही) चुरानी है 
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं

नाराज़ दिखते हो कुछ बेवफ़ाई की क्या 
दिल का चोर आँखों में आ बसा है 
तेवर अगर बाग़ी हैं तो आज़माइश कड़ी है 
अपनी अकेली यादों में ज़रा मेरा सूनापन जोड़ दो 
मुझे इन बाग़ी आँखों में मेरी परछाई लौटानी है
समय के सागर से दो बूँद चुरानी हैं....


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