By Abha Mehta

एहसासों की झील में कंकर एक उछालती हूँ |
थिरकती सी तरंगों पर भाव रखती जाती हूँ ||
विशाल शब्द अंबर में कल्पित कपोत उड़ाती हूँ |
अमर सृजन-तरु डाल पर काव्य बांधती जाती हूँ ||
सलोने टूटे स्वप्न में नेह आलेप लगाती हूँ |
छिटके फटते रिश्तों पर तुरपन करती जाती हूँ ||
दुख के सामोवारों में सुखमय भाप उठाती हूँ |
चाय की चुस्कियों पर व्यथा गटकती जाती हूँ ||
शर्वरी की कालिमा में हर्षित चाँदनी छितराती हूँ |
सुकून भरी “आभा “ बन चेहरे सजाती जाती हूँ ||
छोटे छोटे से सुखों में स्वर्णिम पल उठाती हूँ |
आशा सूत्र में सहेज माला पिरोती जाती हूँ ||
अवसाद भरी बदरी में बिजुरी चमकी जानती हूँ |
सुखद पलों की वृष्टि में जीवंतता बीजती जाती हूँ||