By Deepti Shrivastava
विश्वास की सुदृढ़ होती आस्था,
बिन बुलाए जमावड़ा,
न कोई पाती, न ई-मेल,
न ही पीले चावल,
न करबद्ध निवेदन,
न विनम्र प्रार्थना।
त्रिवेणी संगम की डुबकी पर है स्व की आस्था,
भेद-विभेद से मुक्त होती आस्था,
मन में अदृश्य के प्रति रूझान,
कहलाती आस्था।
विश्व में सर्वशक्तिमान का
झंडा फहराती आस्था-
मेरी आस्था, आपकी आस्था,
हम सबकी आस्था।
जन-मन का सैलाब है आस्था,
अगला जन्म बेहतर हो,
पाप धो, पुण्य कमाने में
हैं हम सबकी आस्था।
संकल्प लें-
हमारी निरझणियों का
यूँ ही कल-कल बहता स्वच्छ
विमल नीर बनाए रखने में आस्था।
तभी संतति करेगी सनातनी परंपरा पर आस्था,
गौरवान्वित होगी पीढ़ी दर पीढ़ी
चलने वाली आस्था।