एक अनोखा रिश्ता... – Delhi Poetry Slam

एक अनोखा रिश्ता...

By Aarti Likhite

क्यों, एक ऐसा रिश्ता नहीं हो सकता,
हर रिश्ते से परे ...
जहां सिर्फ भावनाएं हों,
एक दूसरे को समझने की चाह
हमदर्द, हमराज़ बने रहने की कोशिश हो
कुछ तुम सुनाओ, कुछ हम;
कोई बंदिशें ना हों, ना कोई गलतफहमियां
ना तुम हमें आज़माओ, ना हम तुम्हें
जहाँ कोई कटघरा , न कोई सवाली हो
बस एक-दूसरे के साथ यूं ही चलते रहें,
एक दूसरे का हाथ थामे हुए
कुछ तुम हमें संवारो, कुछ हम तुम्हें
अपनी ज़िंदगियों को संभाले हुए
तुम अपनी संभालो, हम अपनी
बस कुछ ही पल अपने बनाकर चलें...
क्यों, एक ऐसा रिश्ता नहीं हो सकता,
हर रिश्ते से परे ...

जिस दिन बोझ लगने लगे ये रिश्ता
कह देना अलविदा हँसते मुस्कुराते हुए
कुछ प्यारी सी यादें सँजोए
उन लम्हों की जो हमने साथ बिताए
ना कोई गिला हो, ना शिकवा रहे
बस एक एहसास साथ लिए हुए
कह देंगे हम भी अलविदा
दुआओं में रखकर तुम्हें
जी लेंगे ज़िंदगी, हम भी खुशी-खुशी...
क्यों, एक ऐसा रिश्ता नहीं हो सकता,
 हर रिश्ते से परे ...


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