By Ritika Rajput
दास्तान फड़फडाते हुए मेरे उन पन्नों की,
जिस पर तराशा था मैंने उसे अपनी इस कलम से।
वो मुस्कुराहट उन आँखों की,
जिसे ओढ़ लिया था मैंने अपने लबों पर।
वो दास्तान बाग में खिले उस गुलाब की,
जिसे बागबां ने छुपाया था हर तितली से।
वो कहानी मेरे टूटे हुए ख़ाब की,
जिसे समेटा था मैंने लफ्जों से।
वो दास्तान मेरे फड़फडाते हुए उन पन्नों की,
जिसमें सालों पहले रखा गुलाब अब दम तोड़ चुका था।
वो कहानी मेरी मोहब्बत की,
जो उस गुलाब की तरह अब दम तोड़ रही थी।
पर वो पन्ने आज भी फड़फडाते रहते है,
इक दास्तान बयान करते रहते है।