शब्दों भरी रात – Delhi Poetry Slam

शब्दों भरी रात

By Mihir Sachdeva

 

शब्दों भरी रात 
जाने रात में किसका डर बेहतर होता है ,
अंधेरे का या चाँद का ,
यादों का या वादों का ,
पुराने कोनों का , या नए तोफ़ो का ,
मगर सबसे ज़्यादा ,
अधूरे लेखन का ,
उन अधूरी लिखावटों में जिन्हें दो बूंध आँख भी कम पड़ जाती है ,
आसमान में टिमटिमाते ये शब्द है जिनकी सूरत रौशनी की है और तासीर सूरज की ,
जिनके भाव सच्चे है और आसार डरावने,
मगर हमे लत्त है , लत्त है इस शब्दों भरी रात की , लत्त है हमे ख़ुदसे मुलाक़ात की ,
जब रगो में आज़ादी दौड़ती है ,
जब शर्म पर्दों के पीछे मुँह छुपाती है ,
जहाँ हकीकत की शांति में भी समय का शोर है ,
जहाँ किताबो की नर्मी में भी उन बाहों का ज़ोर है ,
ज़ख़्म है या मरहम , समझ ही नहीं आती ,
तरस है या जलन , समझ ही नहीं आती ।


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