मेरे मन का भी वध कर – Delhi Poetry Slam

मेरे मन का भी वध कर

By Anwita Negi

 

वो भगवान थे !
लेकर आये शक्ति थे
या नहीं,
पर आये बनकर तो वो इंसान थे I

परीक्षा ऐसी -
माता का आशीर्वाद न,
पिता की ऐसी बेबसी क्या,
मिला धोखा माता-पिता के प्रेम में,
वो भगवान थे
इसलिए,
पर बनकर आये तो वो इंसान थे I

कैसे सहन कर पाएं,
कष्ट पहुँचाया मन को -
धोखे का प्रतिशोध न आया,
अपने हक का विचार न सताया,
भेदभाव की आग से मन को न जलाया -
मन के इस चोट को सहन कर पाए,
या नहीं,
पता नहीं -
वो भगवान थे, इसलिए,
पर बनकर आये तो वो इंसान थे I

कैसे नहीं आया ये विचार -
पत्नी लाई दुर्भाग्य,
आता मन में आम इंसान के,
उनके मन में क्यों नहीं आया,
पता नहीं -
वो भगवान थे, इसलिए,
पर आये तो बनकर वो इंसान थे I

राजा बनते-बनते रह गये,
महल से झोपड़ी,
सारा यौवन भटके जंगलों में -
दर्द से मन में श्राप न आया,
क्रोध ना आया,
अन्याय का विचार न आया,
आता मन में आम इंसान के,
उनके मन में आया या नहीं,
पता नहीं -
वो भगवान थे इसलिए,
पर आये तो वो बनकर इंसान थे I


मेरे साथ ही क्यों,
मैंने क्या बिगाड़ा किसी का,
हे भगवान, तू क्यों ऐसा करता है,
मुझे किस बात की सजा देता है -
यही तो हैं विचार आम इंसान के,
फिर उनके मन ने उन्हें सताया
या नहीं,
पता नहीं-
वो भगवान थे इसलिए,
पर आये तो बनकर इंसान थे I

कर बंटवारा राजपाठ का,
अपनी पत्नी- बच्चों संग,
अपने महल ऐश से रहूँ,
क्यों जीवन अपना
बाप के किये वचन से बंधूं,
माँ भी दूसरी,
क्यों उसकी इच्छा की मैं ही बलि चढ़ू I

करता यही आम इंसान है,
नहीं किया उन्होंने ये,
क्यों,
पता नहीं,
वो भी तो बनकर आये इंसान थे,

जीवन तुम्हारा कष्ट में गुजरा,
फिर भी रावण का उद्धार किया,
मेरे मन का भी वध कर,
हे राम,
मेरा भी उद्धार कर,

मेरे मन का भी वध कर,
हे राम,
मेरा भी उद्धार कर I



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