1 – Delhi Poetry Slam

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By Asma Shaikh

मैंने जब भी तुम्हें लिखा है……..!
हमेशा…
चांद, सूरज, फूल, पहाड़, नदी, समुद्र,
बारिश, बूंद, सुबह की धूप और खूबसूरत शाम,
इन सभी से गुजरते हुए लिखा है।

लेकिन जैसे-जैसे वक्त मुंतक़िल होता गया
और इश्क़ एक उरुज तक पहुंचता गया,
मुझे इस बात का इल्म हो रहा है कि,
ये जितने भी सब रास्ते हैं
जिन से गुजरते हुए मैंने तुम्हें लिखा है
ये सब कम हैं…… बहुत कम……!

समंदर का पानी खत्म हो सकता है,
चांद की रोशनी कम हो सकती है,
सूरज की तपिश शीतल हो सकती है,
और फूलों के रंग बिखर सकते हैं।

लेकिन…
तुम उस रफ़ाक़त की तरह हो
जिसकी कशिश कभी खत्म नहीं होती,
ना कम होती है और ना ही कभी बिखरती है।

फिर यूँ हुआ कि सारे रास्ते खत्म हो गए
लेकिन बेहद-ओ-बे-हिसाब बस तुम रह गए।

दिल करता है कभी तुमसे रूबरू होकर यूँ कहूं कि
ओ बे-शुमार चाहतों वाले,
ओ ला-महदूद तसव्वुर वाले,
ओ खूबसूरत आंखों वाले,
मुझे इन आंखों की गहराई तक उतर जाने दे,

लेकिन…
मैं अपनी ज़ब्त-ए-ख़्वाहिश पर पर्दा डालते हुए,
मैं… फिलहाल, बस इतना कहूंगी कि

अय साहिब-ए-ज़र्फ़, अय अहल-ए-ज़र्फ़
तुम तो तीरगी में ज़र-फ़िशानी हो,
दिलकश हो… कि दिल-कुशा भी हो,
दिल-फ़ज़ा, दिले-आवेज़, दिल-पज़ीर, दिल-ए-आगाह हो।

क्या-क्या लिखूं कि क्या हो तुम?
बस इतना पढ़ लो कि
“मोहब्बत हो तुम”…!


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