By Reena Mehta

थकान
कंधो वाली
बीच बतियाते, बातों का छोड़
नींद संग होने वाली
रोज़ से रोज़गार
दो दूनी चार
हमेशा तंग कभी ना मलंग वाली
थकान
बड़पन वाली
खेल खेल में लड़कपन का साथ छोड़
सायानी बन ने वाली
कतरे टुकड़े समेटने वाली
थकान
ख्वाब, ख्वाइशों वाली
घर, गृहस्ती
चूल्हे, चौखें
बर्तन, बचें
आमदनी, खर्चें
आज़ादी की किश्तें
भर भर ज़िम्मेदारी निभाने वाली
थकान
ज़िंदा है से
जी रहे है वाली
वह अनगिनत सासें
गीन गीन लेते हुए
आराम की आस लगाए
मौत की गोद में सोने वाली
थकान
कभी थक ही नहीं।