By Lata Seth
हवा से हल्की, धूप से नरम,
एक छुअन थी बिन आहट के,
मैंने सोचा, ये क्या है?
शायद कोई अहसास है,
शायद कोई बात है।
समय की हथेली पर इक बूँद गिरी,
न कोई रंग, न कोई रूप,
बस हल्की-सी ठंडक,
बस गहराई का सबूत।
कहाँ जानती थी मैं,
जो दिखता नहीं, वही सबसे गहरा होता है,
जो हर रंग में घुल जाए, वही सच्चा होता है।
फिर तुम मिले...
जैसे पानी हर प्यास की पहचान हो,
जैसे मौन में भी एक पूरी कहानी हो।
अब समझ आया,
कुछ रिश्ते पानी जैसे होते हैं...
बेरंग, मगर जीवन के हर रंग में घुले हुए।