मुझे अंतरिक्ष होना है। – Delhi Poetry Slam

मुझे अंतरिक्ष होना है।

BY SWATI TIWARI

मैं पार जाना चाहती हूँ
तुम्हारी परिस्थिति और पारिस्थिति दोनों से
मैं प्रलय का स्रोत हूँ
हिमखंड टूटना चाहते हैं मेरी आंखों के कोने से
मैं समय की परिमिति से पार
लांघ कर विश्व की विमाओं के विस्तार
शून्य में खोना चाहती हूँ
मैं अंतरिक्ष होना चाहती हूँ

मुझे अस्वीकार हैं समय के सारे नियम
मुझे नहीं मानना है तुम्हारी हदों को
प्रश्न मेरी प्रकृति है, शब्दकोश छोटा है
माैन कैसे सिखाऊं भाषा के कायदों को
थोड़े-थोड़े के गणित में, बड़ी गड़बड़ी हैं
और मेरे कदमों को थोड़ी हड़बड़ी हैं
मां के पानी के थाल में चंदा डुबोना है
मुझे अंतरिक्ष होना है

सारा आकाश, सारे तारे
मुझे चाहिए ये सारे चांद सितारे
सूरज की सारी रोशनी
मुझे अपने हिस्से का सारा ताप चाहिए
खामियों भी खूबियों भी
पारितोषिक नहीं, प्रयत्न का परिमाप चाहिए
मैं रिक्तता सजोना चाहती हूँ
मैं अंतरिक्ष होना चाहती हूँ

खुद के भीतर जो अंतरिक्ष है
जिसमें समाए हैं तुम्हारे सारे समंदर
क्षमा और करुणा के सागर,
मेरे हृदय का पाषाण होना, बर्फ के सारे खँडहर
मेरी पराजयों के पठार
और बने हुए हैं कुंठाओं के जितने भी पर्वत
उम्मीदों के द्वीप,
मरुस्थलों की पिपासा में मृगतृष्णा की चाहत
मैं मेरा होना चाहती हूँ
मैं अंतरिक्ष होना चाहती हूँ

उल्का का वेग, उपग्रह का मोह
मेरी शून्यता चाहिए, मेरी नीरवता चाहिए
ग्रहों की गति, गुरुत्व का बल
मुझे शीलता चाहिए, मुझे तरलता चाहिए
परमाणु के परमतत्व सी अनिश्चित
और सौरमंडल सी अप्राप्य ,अपरिमित
मैं आकाशगंगा होना चाहती हूँ
मैं अंतरिक्ष होना चाहती हूँ

मैं अंतरिक्ष होना चाहती हूँ
ताकि असंभव हो मुझे खोज पाना
अनंत युगों को आँखों में भर
एक अंतरिक्ष रोज बनाना
मैं, "स्वाति" होना चाहती हूँ
मैं अंतरिक्ष होना चाहती हूँ


1 comment

  • Very nice Swati

    Poonam lata prabhakar

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