By Rohit Garg
मैं अपनी हर इक श्वास जो लूँ ,
उसे पूर्ण संतोष से भर पाऊँ ।
यदि श्री राम गुणों कि अपने चरित्र में,
मैं प्राण प्रतिष्ठा कर पाऊँ ।।
इक इक प्रजा, इक इक दरबारी,
सबके मन में उत्सुकता भारी।
गुरू वशिष्ठ के निकाले मुहूर्त में,
रघुवर सँभालेंगे ज़िम्मेदारी॥
हुआ स्तब्ध हर अयोध्या वासी,
हर आँख में आँसू, घनघोर उदासी।
सजना था मुकुट जिस सिर पर,
धरा उन्होंने वेश वनवासी॥
जहां जहां रघुवर के चरण पड़े,
देने तैयार सब शरण खड़े।
पर मर्यादा पुरुषोत्तम तो ,
वनवास कि मर्यादा पे अड़े॥
कुश से शैय्या ख़ुद ही बुनते,
सब कंद मूल ख़ुद ही चुनते।
ख़ुद ही कुटी का निर्माण किया,
यूँ निष्ठा का प्रमाण दिया॥
जो अपने सारे कर्मों का,
धर्म से बस श्रृंगार करे।
मर्यादा को ना पार करे,
सृष्टि उसका उद्धार करे।
हर कर्म मेरा मर्यादा में हो ,
तो भव सागर पार उतर पाऊँ …
अगर राम गुणों कि अपने चरित्र में,
मैं प्राण प्रतिष्ठा कर पाऊँ॥
जब भरत ने जाना, जो हुई अनहोनी,
वे ग्लानि से बस भर जाते हैं।
थाम गुरू का हाथ, ले माँओं को साथ
वह शरण रघुवर कि आते हैं॥
भरत थे आतुर, निर्मल निश्छल ,
मिथ्या कलंक मिटाने को ।
राम अडिग, अटल शिला से,
अपना धर्म निभाने को॥
किया तर्क, विनय भी भ्राता ने,
और वचन मुक्त कर दिया माता ने।
गुरु वशिष्ठ को देख असहाय,
दोनों ने जनक से माँगा फिर न्याय॥
जनक आज्ञा को दिया आकार,
किया राज्य रघुवर ने यूँ स्वीकार।
जब तब ना पूर्ण हो मेरा वनवास,
प्रिय भरत सम्भालो तुम राज्य भार॥
ना प्रेम से ही विमुख हुए,
ना धर्म का परित्याग किया ।
कर्तव्य पथ से डिगे नहीं,
और प्रेम का भी अनुराग किया॥
हर कदम मेरा सही राह पड़े ,
जिस दिशा निकलूँ , मैं जिधर जाऊँ …
इन राम गुणों कि अपने चरित्र में,
जो मैं प्राण प्रतिष्ठा कर पाऊँ॥
नहीं किया रघुवर ने यह सवाल,
क्यू दिया राज्य से मुझे निकाल।
बस पितु आज्ञा कि पूँजी सँभाल,
वन में विचरे चौदह वह साल॥
स्वयं धरा-पति का वन को गमन ,
नहीं विपदा ये, था नियति का चयन।
वे वन में विहार कर निखरे क्षण क्षण,
तप कर निखरता जैसे है स्वर्ण॥
कोटी ऋषियों से उन्हें ज्ञान मिला,
ऋषि अत्रि से परिज्ञान मिला।
मिला मुनि अगस्त्य से ब्रह्मदत्त,
अक्षय तुणिर और बाण मिला॥
शबरी से स्नेह का अनुदान मिला,
बजरंगी सा भक्त महान मिला।
वानर सेना में समाधान मिला,
रावण वध का यशगान मिला॥
न विरोध किया, न ज़रा संताप भी,
सब गँवा कर, किया प्राप्त ही।
माँ पिता के मुख से निकला श्राप भी,
फलता है तो देता है प्रताप ही॥
इस आदर्श से हो कर मैं प्रेरित ,
हर आज्ञा पे और निखर आऊँ …
इन राम गुणों कि अपने चरित्र में,
मैं प्राण प्रतिष्ठा कर पाऊँ॥
हे राम कृपा हो,
राम लल्ला की प्राण प्रतिष्ठा पर,
मैं आप से बस ये वर पाऊँ,
कुछ राम गुणों कि अपने चरित्र में,
मैं प्राण प्रतिष्ठा कर पाऊँ॥