Ratapani ka Jungle – Delhi Poetry Slam

Ratapani ka Jungle

By Bhavna Kothari 

रातापानी का जंगल

बैरुसोत झील

ठहरी,

समेटे - बीती कई सदियां, रौहू, कटला और मगरमच्छ।

जब तुम झांकते हो इसके शांत पानी में

पलके हो भले चांदनी में डूबी,

पर डर की छाया

दिखती हैं आंखो में

मुझे भी, बैरुसोत को भी।

बार बार गिनते हों कदमों को यहां

गिनती, संख्या और नाम,

अविश्वास, डर और संशय !

क्या आग पर चल रहे हो?

चौकन्ने रहते रहते थक न जाते हो?

गांठे बंधी है दिल के दरवाज़े पर।

जब मैं कहती हूं कोहनी मार - "उड़ जाओ"

तुम मुस्कुरा कर कहते हों ऐसा कर नही सकते,

डर घेर लेते हैं पंख फैलाते ही

यहां किसका डर ?

यह है रातापानी ।

डर तो प्रश्नों से लगता है

यहां कौन हैं पूछने ?

न मुस्कुराओ,

न जवाब दो फालतू प्रश्नों के,

न सहलाओ किसी का भी अहम

यहां कौन ही है

सागोन को ही गले लगाओ, आग उगल दो

अगले पल

मिट्टी में लौट लगा लो

दौड़ लगा दो फिर पल भर

गिर जाओ और उठो भी मत

पड़े रहो धूल में लथपथ,

आंख लग जाएं तो सो जाओ

चीतल, सांभर सब सोए पड़े है

भरी दोपहर है


आसमान नीला हो चला है

बैरुसोत के दिल में दिखता है,

चमकता ,हिलता, कंपकपाता

जैसे भावनाओ में बह रहा हो।

पटा पड़ा है बांस के सूखे ठूंठों से इसका किनारा

जरा सी भी आहट हो अगर

हवा की

घमरा के फूलों की छोटी छोटी पंखुरिया

हिलती है

तुम घमरा की तरह हो

लंबी नाज़ुक टहनी पर डंटे हुए हो

दिल मुंह को आ जाता है हर आहट पर

कान लाल हो पड़ते है तुम्हारे ।

बाघ नही आते यहां, लक्कड़बग्गा होगा

बुलबुल चहकी

घमरा के फूल सूरज की तरफ झुके जा रहे है

जंगली है।

हवाएं गाने गाती है

सरसराते पत्तो को छू कर जाती है

जंगल के गीत है बिना कॉपीराइट के

तुम भी गाओ, गुनगुना लो।

कुछ नाम नही ही इनके

कुछ दाम नही है

प्यार की तरह, मुफ्त है


पिछली रात बारिश रुकी नहीं

पल भर भी नही

रातापानी के

ज़ेहन तक पहुंच गई

ठंडी, गीली, निरंतर

ठिठुर गए तुम और मैं।

राते फिर हो गई लंबी

सुबह हो चली अंधेरी

सीली सीली छत जंगल की

जैसे अब कभी सूरज आयेगा ही नही

तुमने भी सोचा होगा- सदियों तक टूट कर बरसेगी

डूब जायेंगे तुम , मैं और रातापानी


लो सूरज भी निकल आया, रात की बारिश

अब कुछ देर हीं की हैं

धूप के पर पसरने लगे हैं, चमकता है जंगल

गर्म रोशनी में नहा गए हो तुम।

तुम अचंभित हो, बारिश गई कहां?

चली गईं।

छोटी छोटी बूंदे लटकी है टहनियों पर

गिरकर मिट्टी में मिल जाने तैयार

अंजली में भर ली है मैने

कुछ बूंदे

कितनी कोमल है

ठहरे पानी का एक अंश

आस निराश रातापानी।


एक सौ पचास तरह की चिड़ियाएं

एक भी पास नहीं आती तुम्हारे

बैठती नही कंधे पर तुम्हारे

चोंच साफ करने।

तुम हौले भरो गहरी सांसे

तुम्हारे डर धड़कते है

संशय भरे सीने में।

चिड़िया तो क्या कोई

लंगूर भी न पास फटकेगा।

थोड़े बंधन खोलो

धीरे से रो लो, या फिर नहालो आंसुओ के परनाले में

सांसे लो हल्के से, आंखे मूंद लो

खैरेया उड़ गई।

क्या करें तुम कैद हो अपने आप में।

कौन करेगा दोस्ती तुमसे।


यहां आसमान का रंग ज्यादा है नीला

बारिश है गीली ज्यादा

चीतल की पुकार है तीखी पलास के फूलों सी

पसीना महकता है खट्टे बिल के फल सा

सब कुछ ज़्यादा है

महसूस होता हैं तो सीना चीर जाता है

और जब खुश होता है

तो फूलते है हरसिंगार धमनियों के

बहते खून में।


आज शांत है दोपहर,

सोए पड़े ही जीव जानवर क्या?

तुम बैचेन हो पड़ते हो।

तुम्हारे, मेरे कदमों की आहट तेंदू पत्तों पर

बाकी सब शांत,

चुप है इस पल

अगले पल में खा जाएगा दबोच कर, माफी नही,

खाना मांगेगा - बाघ है, तेंदुआ है, सियार है

सिरहन जो दौड़ गई हैं

लेट जाओ मृत शरीर की तरह

चीलों से भरने लगा हैं आसमान

मौत बस क्षण भर की दूरी पर

सांस उपर की उपर

नीचे की नीचे।


मैं शब्दहीन हुं, स्तब्ध।

तुमने शहर आत्मसात कर लिया हैं

तुम प्रश्नों में जीते हो।

कितनी पंक्तियां प्रश्नों से भरी

कुछ पंक्तियां अटकी है

रात की भीगी टहनियों पर।

नींद में तुम बार बार पूछते

हो कि क्या मैं शामिल नहीं अब

इस दुनिया के मेले में?

और मै कहती हूं की

अच्छा ही हुआ की

तुम निकल आए।

काश तुम्हारे उलझे हुए प्रशन होते

बारिशों में भीगते पत्तों की तरह

कुछ डूब जाते

कुछ भीग जाते

कुछ पेड़ के नीचे सिमट जाते

बस इक्का दुक्का ही मुझ तक आते।

मेरे उत्तर चुक गए है।

ज़रा जायदा देर रुक गए

जंगल में, तो

पत्ते उग आए हैं कंधो पे

फूलो की खुशबू सांसों में

डरती हूं

पैरो से जड़े निकल कर

धरती में उतर गई तो?

बिखर जाओ

दस दिशाओं में

दिशा निर्देश

का मैनुअल खो जो दिया है मैंने

देखो उपर, बादलों को

जब बारिश हो

आंखो में भर जाएंगी बूंदे

और धौ देंगी सपने कल के

फिर हम पड़े धरती पर निहारा करेंगे

सुथरा साफ़ आसमान।


तू न डर,

सांस भर कर देख तमाशा।

कुत्ते छीनते, सेंध मारते, चुराते

शिकार

तेंदुए और बाघ का।

ढोले है जंगली

तेरे मेरे मोहल्ले के दुलारे नही।

झुंड में ,

ताक में

आंख में,

रात में,

शिकार करते है।

तुम सो नहीं पाए रात भर।

रात गहरी है

डराती है

जंगल के दिये नहीं है ,

यह डर है बचपन के हिस्से।

आज तक

डराते हैं

कभी अंधेरा बन कर , कभी

रोशनी बन कर आंखो में चोंधीयते है

समेट लो तुम

यह बचपन के हिसाब किताब

पूरी उम्र भर

काम आयेंगे पहाड़ो की तरह

जब वापस जाओगे अपने शहर।

जंगल में गणित बेकार हैं

यहां अंक और शब्द लोट पोट

हो रहे है धूल भरी पगडंडियों पर।

ढोले हो या तेंदुआ

जंगली सुअर, गिलहरी

एक गहरी सांस और

सब छूट जाता है

गिनती, पहाड़े, अंक, समीकरण, समय

एक दिन यूंही,

एक दिन

आप जीना बंद कर देते हैं।

कोई और अच्छा तरीका है क्या

अलविदा कहने का?


भीगी सड़के

गीली हवा

मैं पैदल चलते हुए

गुजरती हूं देखते हुऐ

पानी की पत्तो पे पड़ी

रोशनी के सुंदर कसीदे

कितनी सर्द है राते यहां

सुबह का सूरज प्रतीक्षारत

नही

वो तो आकाश में चढ़ कर बैठा

हैं कहीं और देश में

धूप के लाले है आज रातापानी में।

पेड़ो की टहनियों के साथ चिपकी,

बारिश के पानी भरे गड्डो में तैरती,

तुम्हारी हंसी में भी घुल जाती,

ऊंची मढिया पर पांव लटका कर बैठी कभी

यह रहती हैं, रहती ही हैं

जंगल की आवाज़ें

सनातन है

निरंतर, बढ़ती है किसी दिन

जैसे जैसे दिन चढ़ता हैं

और किसी दिन

मेरे दिल के एक कोने में

सिमट जाती है।

रहती हैं।

धूल धुल गई

बरीशे सूख गई

पत्ते अभी भी अटके ही विंडशील्ड पर

सूखे हुए घमरा के फूल

मेरी उंगलियों से लिपट जाते हैं

जब भी चाबी निकालने

हाथ जाता हैं जेब में

दोपहर में भरे ट्रैफिक में

मेरी निगाहें टिकी हैं बिलबोर्ड पर

बेच रहे हैं एक बालकनी वाले घर

करोड़ों में

मैने छोड़ दिया सितारों से सजा

बेशकीमती नीली छत

वाला घर

वहां अभी चीखा होगा काले मुंह का लंगूर

और तेंदू के पत्ते सरसराये होंगे

धूप ने जला दिया होगा घांस का सर

और पलाश महका होगा

जंगल कभी खत्म नहीं होता।

उतर जाता है साँसो मै।


3 comments

  • बहुत सुन्दर कविता! ठहरी हुई, धंसी हुई सुघड़ भाषा।

    नया और ताज़ा लैंडस्केप

    क्या मूल हिंदी में लिखी गई है?

    अजेय
  • बहुत सुन्दर कविता! ठहरी हुई, धंसी हुई सुघड़ भाषा।

    नया और ताज़ा लैंडस्केप

    क्या मूल हिंदी में लिखी गई है?

    अजेय
  • बहुत सुन्दर कविता! ठहरी हुई, धंसी हुई सुघड़ भाषा।

    नया और ताज़ा लैंडस्केप

    क्या मूल हिंदी में लिखी गई है?

    अजेय

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