दहेज प्रथा – Delhi Poetry Slam

दहेज प्रथा

BY RANJANA CHAKRABORTY

गली मोहल्लों में उसकी हंसी गूंजती थी,
अब वहां मौत का सन्नाटा है।
घर-घर में जहां शोर गूंजता था।
अब वहां मायूसों का बसेरा है।
हंसी की किलकारियां भी अब,
चीखों में बदल गई।
बेटी की डोली लेकर गए थे ,
पर अब वहां से अर्थी उठ गई।
अगर सबका घर इतना अच्छा है तो,
ससुराल इतना बुरा क्यों होता है?
AC, TV, Fridge मांग कर,
लड़की की जिंदगी का सौदा क्यूँ होता है,
कहने को तो यह दहेज प्रथा है,
पर अब इसको Gift का नाम दिया जाता है|
मां-बाप भी बेचारे क्या करें,
उनको भी शुरू से यही बताया जाता है।
लड़की के घर से सब कुछ आता है,
यह सोच हर एक घर में बताया जाता है!
इन दहेज के चक्करों में,
ना जाने कितनी लड़कियों का बलिदान जाता है।
इतना देखने के बावजूद भी,
लोगों की रूह तक नहीं कांपी है !
समय के रहते हम सब को एक प्रण लेना है,
ऐसे मांगने वालों से हमें ,
हर घर की लड़की को दूर रखना है।


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