राहतें – Delhi Poetry Slam

राहतें

By Ramanjit Walia

ना पूछ मुझसे कि क्या हुआ है
ये ऊँगली तेरी तरफ उठेगी
खुमारी मुझ पे जो छा रही है
ये सब तुम्हारी नवाज़िशें हैं

हमने सोचा तू मखमली है
तेरी तलब भी नरम सी होगी
खंजर सी पर ये चुभ रही है
जो तुमको पाने की ख्वाहिशें हैं

इश्क़-ए-दरिया में तैरने को
हमने कश्ती तैयार की थी
इन अश्कों मे जो बरस रही है
उसी समंदर की बरीशें हैं

फिर आने का वादा करके तूने
मेरे जुनूँ को हवा तो दे दी
फिर आज जलती लौ बुझ रही है
ये आँधियों की ही साज़िशें हैं

करीब मेरे तू चाहे आ ना
साये को अपने मत रोक लेना
तू अक्स में मुझसे मिल रही है
इसी से बस मुझको राहतें हैं


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