By Priyanka Ahuja
ये जंगल तुझे सौप कर हम मिलो आगे निकल आये
शहर कि वीरान रातो में हर वक्त तेरा पहरा नज़र आया!
रात हैं सेहमी हुई, बात हैं दबदबी हुई,
बात उस रात की, ज़ात की औकात की,
खूंखार की लाचार की, हवस के अंधकार की
वस्त्र जहाँ निर्वस्त्र हुए, इंसान जहाँ शर्मसार हुए,
शिष्टता नहीं क्रूरता हैं, सभ्यता नहीं प्रचंडता हैं
बेड़ियों में इन्साफ हैं, गलता हुआ इतिहास हैं,
सबूतो की गुहार हैं, तारीकियों की मार हैं
तारीकियों की मार हैं
बात उस रात की, ज़ात की औकात की,
खूंखार की लाचार की, हवस के अंधकार की
गुलशुदा तहज़ीब सी, ग़मगीन हुई तकदीर सी,
खिलखिलाती वादियाँ थी, दिलनशीं आबादियाँ थी,
बेखौफ़ थी बेबाक थी, बेहोश थी ख़ामोश थी,
सीपियों में आन हैं, सिमटी हुई ये जान हैं,
सलासिल में इंसान हैं
सलासिल में इंसान हैं
तोड़दी हैं बेड़िया, आज़ाद हैं अब लड़कियाँ,
दहशतज़दा हैं जानवर, आँच आई हैं ईमान पर,
रोक सको तो रोकलो, चाहे जितना टोकलो
बेहया नहीं बेखौफ़ हैं, निर्लज नहीं निर्भीक हैं!
निर्लज नहीं निर्भीक हैं!
ज़िन्दगी भर दर्द की शइया पर लेटे थे हम
आग की तपिश से अब डर कैसा!