Panchi – Delhi Poetry Slam

Panchi

By Rekha Balachandran

में ऐसी एक क्षितिज की तलाश में हूँ, जिसका कोई अंत न हो।
उड़ान भी ऐसी भरूँ की दूर तक कोई किनारा न हो।
अपने पंख फैलाये उड़ती रहूँ उन सरहदों के पार।
जिन्हे इंसानो ने तो बनाया है अपनी सहूलियत के लिए।

पर पंछियों के लिए क्या सरहद, क्या समुन्दर।
जहां पंख ले जाए वही मंज़र।
पर हम भुलाते नहीं अपनों को, कभी इंसानो की तरह।
मौसम बदलने के बाद लौट आते हैं हम अपने घर।


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