मासूम

BY NIHARIKA YADAV

कितना निर्मल होता है,
किसी शिशु का मन,
खाली स्लेट सा,
जिस पर हर क्षण,
न जाने कितने रेखा-चित्र,
बनते मिटते है,
परन्तु कोई चित्र उसके मन,
उसकी भावनाओं,
पर हावी नहीं हो पाता है,

इतना सरल मन,
कि जो जैसा है,
उसे वैसे ही महसूस करे,
न प्रश्न करे,
न निंदा करे,
बस जाने,
और जान के भूल जाये,

कितनी उन्मुक्त होती है,
उसकी बेफिक्र हँसी,
इतनी सशक्त कि सुनने वाले को,
संग हंसने पर विवश कर दे,
इतनी निराली,
कि सुनने वाले को मधुर संगीत सी प्रतीत हो,
मानो उसके मन की सारी थकान भाप बन उड़ रही हो,

इतनी विशुद्ध छवि होती है एक शिशु की,
उसकी नन्ही उंगलियों के स्पर्श से,
कई उलझने,
सुलझ जाती है,
बिना शब्दों को पिरोये,
वो स्नेह के धागे से बांध देता है,
सिर्फ स्पर्श से,
जैसे गंगा का स्पर्श हो,
द्वेष रहित,पाप रहित,

गोद में जैसे कोई,
फूल सिमटा पड़ा हो,
कोई फूल गुलाब सा,
इतना कोमल कि फूँक मात्र से बिखर जाये,
इतना सुन्दर की सब,
भँवरो से उसके आस पास,
मँडराते रहे,
जिस हाथ बिखरे,
अपनी मीठी खुशबू छोड़ जाये,

निश्छल मन, कितना सुन्दर,
कितना अद्भुत,
बस हाथ पकड़ चल दे जीवन संग,
हर एक कदम पर वही खिलखिलाहट,
हर एक कदम उसी सरलता से लेता हुआ,
अपनी सरलता में वो बस प्रेम करता है,
बिना समझे-विचारे,
बिना कुछ बोले,
वो प्रेम करना और स्वीकारना जानता है,

इतना सुन्दर होता है,
एक शिशु का मन,
इतना दिव्य होता है,
एक शिशु सा मन।


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