कहतें हैं सपने

By Mrudani Deosthali

कहतें हैं सपने
सपने ही ज़िंदगी
ज़िंदगी खुद हकीकत जाने नहीं |

नहीं ना कह पाए
पाए – खोए अवसर कई
कई बार हमें लगा के हम है सही |

सही तो वे भी थे
थे जिनमे खोट
खोट में भी कोई खूबी रही |

रही काफ़ी बातें
बातें मिलावटी
मिलावटी सबने कहानी कही |


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