कैसी आज़ादी

By Mittal Makwana

"“ किस बात पर होगा ग़ुरूर तुझ पर माँ,
अब तूझे पेहले सी पावन कहा रखी ?
आज लहराएँगे आसमान पर तीन रंग तेरे,
कल फिरसे उठा यहा अंधा सवेरा होगा !
किस मुँह से लगाऊ आज नारे तेरे,
कल फिरसे हवामें गुंजती तेरी बेटियो की चीखें(बचाओ)होगी !
कई बेटीयो को देखूँगी ओढ़े तेरे रंग की चूनर को आज,
कल फिरसे मीलेंगी निर्वस्त्र हुई कई नारिओ को “माँ” !
होगा एकता का दिखावा आज, कल फिरसे धरम के दंगे उठेंगे,
राजनीति के बल पर होगी फिरसे लड़ाइया बीच हमारे !
फ़ुल बरसेंगे आज तिरंगे से तेरे,
कल बरसता गोली बारूदो का यहा क़हर होगा !
सुनेंगे जिन वीर-शहीदों की हिंमत की आज दाद,
कल उन्हिकी जतायी हिम्मत पे पानी फेरा जाएगा !
आज देखने मिलेगा भारत का भाईचारा,
कल फिरसे हिंदू मुस्लिम बटवारा होगा !
गूँजेंगे गीत जिस कंठ से आज़ादी के आज,
कल फिर उन्हि आवाज़ो को दबाया जाएगा !
स्वतंत्र राष्ट्र का दिखावा कर के,
कल हमे कूटनीति के दलदल में धसेला जाएगा !
देशप्रेम के नाम पर मिठाईयाँ बाटी जाएगी,
कल फिर हमे भ्रष्टाचार का निवौला खिलाया जाएगा !
आज़ादी और न्याय की राह पर चलने वालों के पैरों में फिर जंजीरे बांधी जाएगी !
मनायेंगे जो आज़ादी की ख़ुशिया आज,
कल फिर वही हर जगह ख़ौफ़ मैं ख़ुदको क़ैद पायेंगे !
दोहरायेंगे आज गौरव तुम्हारे शौर्य का,
कल फिर उठते मिलेंगे वार आत्मसनमान पर तुम्हारे !
एक बीता कल था जब कहेते थे तुम्हें सुनहरी चिड़िया,
अपने स्वार्थके हथियार से फिर उन्ही पाँखो को काटा जाएगा !
किस बात पर होगा ग़ुरूर तुझ पर माँ,
अब तू पेहले सी पावन कहा रही ???
आज लहराएँगे आसमान पर तीन रंग तेरे,
कल फिरसे उठा यहा अंधा सवेरा होगा !! “

- मित्तल मकवाना"


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