ख़ुद से

By Kshitij Kawatra

हर रोज़ की लड़ाई है, ख़ुद से
दलील है सुनवाई है, ख़ुद से

आख़िर सौदा हो भी जाता है
पर उसके टूटने पर रुसवाई है, ख़ुद से

ऐसा नहीं के तेरी क़दर नहीं हमें
पर मिली ये बे-परवाई है, ख़ुद से

इतना कुछ जो खो दिया, युहीं
की पूरी उसकी भरपाई है, ख़ुद से

शुक्र है कुछ इल्ज़ाम तुम्हारे हिस्से भी आये
वरना लगा हम में ही बुराई है, ख़ुद से


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