By Kavitra Batra
मैंने देखा है,
कई रिश्तों को जाते हुए।
कभी जिनसे पहचान और रौनकें रहती थी,
देखा है उनको, रंज-ओ महफ़िल सजाते हुए ।
इंतज़ार किस बात का कीजियेगा,
जो चले गए, उनका ,
फिर से लौटकर आने का,
जो खोलेंगे सिर्फ दुख दर्द का पिटारा ,
और रहेंगे एक और इल्ज़ामात के सफर को बुनते हुए।
मैंने देखा है ,
वीराने महफ़िल,
दिल की फिर से उभरते हुए ,
एक अनजान अजनबी से ,
फिर से महफूज ए महफ़िल सजते हुए।
तुम बात करते हो , सिर्फ इश्क़ , जिस्म की जरूरतों को पुरा करने के लिए ,
मैंने देखा उस अनजान को ,
बेवजह ही, सफर को पाकीज़ा करते हुए।
।कविता ।