कैसे बिखरे ये ख़्वाब……..रहने दे – Delhi Poetry Slam

कैसे बिखरे ये ख़्वाब……..रहने दे

By Kamal Kumar Singhal

"कैसे बिखरे ये ख़्वाब, रहने दे
टूटे दिल के अस्बाब, रहने दे

मर ना जाऊं कहीं, गिले से ही
थोड़ा चश्म-बे-आब, रहने दे

डर है फिर-से मैं, गिर ना जाऊँ यहाँ
मुझे ख़ाना-ख़राब, रहने दे

नज़र तुम से न अब, मिल पायेगी
रुख़ पे या-रब नक़ाब, रहने दे

तू मेरा दोस्त है, तो मरहम ला
ये सवाल-ओ-जवाब, रहने दे
सवाब (ثواب): reward of good deeds
अब जहन्नुम से, डर नहीं लगता
यार जिक्र-ए-सवाब, रहने दे

छोड़ ढाढस बंधाना, रो लेने दे
रात ग़म से शादाब, रहने दे

उमड़ने को है कलेजा, तस्कीन ना कर
बह ना-जाए चिनाब, रहने दे

मुझे नज़रों से जब, गिरा ही दिया
अब ये आदाब-ओ-अलक़ाब, रहने दे
आदाब-ओ-अलक़ाब (آداب و اَلْقاب): रुतबे के अनुसार शब्द, salutation

हाल-ऐ-दिल फिर कभी, कहेंगे अभी
बंद दिल की किताब, रहने दे

शमा उम्मीद की, कोई तो हो
दिल में कोई सराब, रहने दे


उम्र ढल जाए, क्या पता, सम्भलने में
अभी तो आलम-ए-शबाब, रहने दे
आलम-ए-शबाब (عالم شباب): युवा अवस्था, state of youthfulness"


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