Intezaar- e- mohabbat

By Aastha  

 

आज फिर तुमने बिस्तर के सूने कोने में उंगलियां दौड़ाईं ,
आज फिर मैंने अपने कमरे में पायी सिर्फ तन्हाई .
आज फिर मेरे शिकायतना अंदाज़ पर
तुम्हारे फोन ने मेरे फोन को इंतज़ार ए मोहब्बत की दी दुहाई .

अब ऊब चुकी हूँ इस दूरी से
नहीं रखना ताल्लुक़ किसी मजबूरी से .
क्या मोहताज है ये रिश्ता वक़्त का , हालातों का ?
क्या हौसला फीका पड़ गया है तुम्हारे कसमों का , वादों का ?

होती होंगी राधा , होती होंगी मीरा ,
होंगे कितने रांझे , होंगे कई फकीरां .
न ही मुझमे मीरा है,
न ही मुझमे राधा है ,
न सूफियाना , न शायराना ,
मेरा इश्क़ तो सीधा सादा है .

मुझे ग़लत न समझना ,
तुम्हारी बाहों में महज़ मुनकाबिज़ होना मेरी चाह नहीं ,
हर वक़्त तुम्हारी आँखों में गोते लगाना मेरी राह नहीं .

आग़ाज़ ए शब् पर तुम्हारी दस्तक का इंतज़ार करना ,
हर फज्र कॉफ़ी की प्याली के साथ तुम्हारा दीदार करना ,
सितारों की नुमाइश में तुम्हारे साथ चाँद को निहारना ,
सुकूनमंद शामियाने तले हर ज़वाल तुम्हारी उन्घायिओं में गुज़ारना ,
तुम्हारे बनाये खाने को न चाहते हुए भी खाना ;)
और, शतरंज में तुम्हारे साथ हार जाना .

उल्फत की हर एक रस्म पर हक़ चाहिए ,
रूह से रूह का वस्ल कम नहीं आंकती मैं ,
पर बहुत हुयी ये बाते
मुझे तुम्हारी सोहबत चाहिए .


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