By Girish Chandra Agarwal
|| विनय प्रभु चरणों में ||
धर्म वही जो धारण करते, परम पिता का रखकर ज्ञान।
सकल विश्व परिवार मानकर, करलें मिलकर उसका ध्यान।।
वही पिता माता है मालिक, सकल प्राणियों का रखवाला।
राम वही हनुमान वही, सबको वो रखता है मतवाला।।
प्रभु को चाहो आप जानना, भक्त ह्रदय की रखलो आन।
उसकी सेवा और आरती, मन में इनका निजहित ध्यान।।
वह अनंत है सबका रक्षक, सेवक को देता सम्मान।
जीना साथ-साथ ही रहना, नहीं कही है कुछ अपमान।।
आराधना प्रभु की होगी, भक्त भावना के व्यापारी।
राग द्वेष सब दूर करें अब, अनुष्ठान की है बारी।।
धर्म ग्रंथ ये सदा बताते, भक्ति साधना की गाथायें।
कठिन तपस्या से तप कर लो, सदा जगाते आशायें।।
भक्ति मार्ग है कठिन विदित है, चलने की अब इसकी आन।
विनय सहित आवाहन केसरी, बनो सहायक सेवक जान।।
हुलसी के तुलसी पथगामी, मानस के आराधक मान।
सुंदर ही सुंदर काण्ड लिखा, प्रभु दो निज वाणी का वरदान।।
करूँ विनय कर जोड़ विधाता, बुद्धि सदा हो तुममें लीन।
हो प्रसन्न पूरी हो गाथा, वर मांगे प्रभु से ये दीन।।
ऋषिवर बाल्मीकि की रचना, तुलसी मानस रस की खान।
हनुमान सेवक रघुवर के, हो कर मुदित सहज दो ज्ञान।।