By Dr Tilak Dixit
"आराहे है तारणहार"
( यह कविता संवाद है माता देवकी और पिता वासुदेव जी के बीच , यह समय तब का है जब माता कंस के कारागृह में थी और भगवान कृष्ण माता के गर्भ में थे । माता देवकी अपने गर्भावस्था के अनुभव और समाज में कंस द्वारा बुराइयों का विवरण वासुदेव जी से करती है )
काली है ये कोठरी
काली है ये रात
वासुदेव आर्य सुनते है
मैं देवकी सुनाती हु बात ...
हो रहा है घोर अंधेरा , दुखी है संसार ।
एक है मेरा भाई कंस दूसरे उसके पाप विचार ।
इतना दुख है कि दिखता नहीं दूर तक कोई जीने का आसार ..
पर कोई ऊर्जा है मेरे भीतर जो कहती है
आराहे है तारणहार ।
जीता है अधर्म अब तक और मानुष करते है पुकार..
क्युकी धर्म को हानि हुई है हर बार ।
कंस जैसी बहुत कठिनाइयां होगी हर नदी पार ।
एक हलचल है मेरे भीतर जो कहती है
सबको तारने आ रहे है तारणहार ।
देखो आर्य देखो बदल रहा है मौसम,
लगता है गिरी है बिजली कही..
इतनी गहरी छाया को काट ती है
दिव्यता की ऊर्जा कही ।
आर्य प्रेम और धर्म स्थापना की कहानी लिखी जाने वाली है यमुना पार ।
नारायण स्वयं आरहे है बनके तारणहार ।