By Atal Kashyap
समझ रहे है बच्चे
आज के हमको
पुराना काॅपी-कवर,
उतार फेंकना
हमको चाह रहे है,
देखकर हमारी सलवटें
भददेपन से
मुक्त होना चाह रहे है,
खुद को स्वतंत्र
बिना कवर के
उन्मुक्त होना चाह रहे है,
पर शायद नहीं जानते
बिना कवर के
काॅपी टिक नहीं पायेगीं,
हकीक़त की खरोंचों से
खुद को कैसे बचाएगी,
थी अब तक
सहेजने की जिम्मेदारी
जिस कवर पर,
बिना कवर के
काॅपी की नियति,
बिखरे पन्नों में
दर्ज हो जाएगी।