BY ARCHIT THAKUR
एक दौड़ है इस्स दौर में,
देखता हूँ गौर से,
जीतने की चाह है,
मगर जीत की क्या राह है?
सीखने पर गौर है,
पर हारने का ख़ौफ़ है,
ख़ौफ़ की यह बात है,
आशा ही इसका काट है,
क्या ढूँढते हो इस्स राह को,
तुम खुद ही अपने शाह हो,
ना चाह कर हम हारते,
पर हार को हम वारते,
मैं पूछता हूँ अब्र को,
क्यू ना मुझे यूँ सब्र हो,
डर के इस्स जंजाल से,
लड़ते रहें हार हाल मे
क्या डरके हम इस्स दौड़ से,
जीतेंगे अब हम दौर में?
बस दम लगाये हर-हाल में,
हम जीतेंगे इस दौर में,
अब दम लगा के ज़ोर से,
हम जीतेंगे इस दौर में।