Ek Tasavvur (एक तसव्वुर) – Delhi Poetry Slam

Ek Tasavvur (एक तसव्वुर)

By Akhilesh Sharma

गर सच है, कि तू है आईना,
फिर यह देखता मुझे कौन है,
या मेरा अक़्स है, या कोई शक्स है,
ज़रा यह तो बता, कि तू कौन है

पल जुस्तजू में जो बट गए,
दिन आरज़ू में जो सिमट गए,
सर उल्फत में जो कट गए,
जो बीत गया उसे रोकने की,
ऎसी कशमकश में यह कौन है

वो लफ़्ज़-ओ-मानी किताब के,
वो शेर हुस्न-ओ-शबाब के,
वो कलाम नए इंकलाब के,
सब लिखे हुए को मिटाने की,
ऐसी ज़िद लगाए यह कौन है

कहाँ गुम है सारी हसरतें,
सभी राहतें सभी ख़ाहिशें,
नए शहर की ये खाली तुर्बतें,
जो खो गया उसे ढ़ूढ़ने की,
यहां आस लगाए यह कौन है

गर सच है, कि तू है आईना,
फिर यह देखता मुझे कौन है,
ना मेरा अक़्स है, ना कोई शक्स है,
अभी यह दे बता, कि तू कौन है।।


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