एकाकीपन

By-Preeti Chandravanshi

 

कुछ टूटा था जो जुड़ा नहीं उससे,

कुछ बिखरा था जो समेटा नहीं उसने,

सोचा की बीते की परछाइओं का फ़र्क भी क्या पड़ता होगा,

सच था वो अब फ़र्क भी कुछ कम ही पड़ता है उसे,

महसूस भी कुछ कम ही होता है,

लोगों ने बोला शौक नहीं है इसके,

नफ़रत तो नहीं देखी पर प्यार से कुछ दूरी सी है,

रंगों की दुनिया उसकी आज भी अधूरी ही है,

पर जब यादों के बक्से को टटोला तो एक अलग ही दुनिया मिली उसे,

एक लड़की पाई जिसने सपनो की रेखा सीमा पार खिंची थी,

कि इशक का रंग भी गहरा था पूरा आसमान और भी नीला था,

दिल की हर धड़क में एक शोर सा था ,

जिंदगी मे खुद से जीतने का दौर सा था,

पर अब लगता है अब इशक नहीं है उसमे,

वो इबादत वाली चाह नहीं है उसमे,

रास्ते, चेहरे, मंज़िल सब अंजान सा है,

एक सफ़र तो है वो भी गुमनाम सा है

 

-----------------------------------------------------------------------------------------------

This poem has been published in the book 'The Last Flower Of Spring'. Buy the paperback copy on Amazon: https://tinyurl.com/y9sydnxn


Leave a comment

Please note, comments must be approved before they are published