एक जर्रा सडक का...

Rupali Sawant 

इक जर्रा मै हूं सडक का....
कदम आसमां पर रखता हूं.....
हैसियत है बुंद सी मेरी....
हौसला बाबस्ता समंदर रखता हूं.....
आता जाता पल चाहे मिटाना....
हथेली पर अपनी जां रखता हूं...
देख मुझे मै आजाद परिंदा....
पंख मे उंची उड़ान रखता हूं....
खुले घोसले का मै शहनशाह....
डर ना मुझे ठंड, बारिश का....
और ना ही सूरज की तपिश का....
मुठ्ठी में कैद दर्दो ग़म रखता हूं.....
कहते चिंगारी मुझे बुझतीसी....
खुद में दबी लपटें रखता हूं....
चाहे कोई हस्ती को मीटाना...उसे
खाक कर दूं...दम रखता हूं....
बोयें काटें राहपर मेरी....
उसपर भी चलुं..हूनर रखता हूं...
खाली पेट रहू दिनभर पर....
किसी रात ना भूका सोता हूं....
हो कोई मुसीबत या हो वबा....
सहलाती मुझको लेहराती सबा....
रखकर सर सडक की गोद में....
ओढ़ सितारे सो जाता हूं....
गुंचा ए गुलिस्ता का फूल हूं मै भी....
सजा हुआ काटों पर फिर भी....
डाली सें तोड़े कोई मुझको....
खुद मे समाये खुशबू रखता हूं....
बस्ती में रहती ये हस्ती पर....
चूभते गुमसुम सन्नाटे है....
रहे सड़क पर या मेहेलो मे....
सबको हिस्सों मे बाटें है....
ना है खेल ना कोई खिलोना....
सीखा बचपन रोटी को कमाना....
उडाउं  गुब्बारे आसमान में....
गुबार ये दिल में बंद रखता हूं....
होती दरदर लिबास ए जवानी...
झांके उसमें भी बेशर्मी.....
संभाले आबरु मजबूर वो दामन
देख मुसलसल संभल जाता हूं....
यूं तो कह दूं जीने के लिए..... रुही
खुली सडक का वो जीवन था....
मोटरो में झांकती  भूंकी आंखे....
अधनंगा सहमा इक बचपन था....
मोहलत ऐ जिंदगी  तमाम सांसे...
जिनका है हमने भरा किराया....
ऐवज में दफन ख्वाहिशे सडक पर...
फिर भी ना मिले कोई सराया....

7 comments

  • It’s an unbelievable j

    Waseem
  • Khup sunddar 👌👌

    Nandini patil
  • Nice poetry keep it up

    Shafi
  • बहुत खूब

    Anita
  • Hii nyc poem

    Vaibhav
  • बहुत सुंदर प्रस्तुती 👌👌

    Priya
  • Kya bat hai mohtrma 👌👌👌👌

    Shubhangi

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