हद्द है, है ना?

Vidya Bharti

हर दिन तुम्हारा यूँ सड़क  पे जाना,
और एक बच्चे का तुम्हे टोक कर विनती करना ,
की खरीद लो तुम अपने पैसो से ,
जो चीज़ पकड़ी है उसने अपनी हाथो में बेचने के लिए | 
उसका तुमसे ऐसे अपेक्षा करना ,
हद्द है, है ना?
खाते वक़्त जो भूख मीट जाती है तुम्हारी,
खाली नहीं कर पाते हो जो तुम अपनी थाली,
फिर हिचकिचाते हो थोड़ा ,
जब फेकते हो बचा हुआ दाना |
तुम्हारा ऐसा सोचना भी ,
हद्द है, है ना?
अलमारी तुम्हारी पूरी भरी हुई है ,
लाल पीले हरे नीले और ना जाने कितने सारे रंगो से | 
लेकिन वो जो बेरंग सी ज़िन्दगी जी रहे है ,
और ना जाने कितनी ठण्ड यूँ ठुठुर ठुठुर के गुज़ार चुके है, 
उनका ऐसे अपनी उम्मीद पे अटल रहना ,
हद्द है, है ना?
कपड़े ज़ेवर गाड़ियों से तुरंत आकर्षित हो जाते हो,
लेकिन धुप में सिक रहे उन खाली पैरों पे ध्यान देने की तकलीफ नहीं उठा पाते हो |
एक ही आसमान के नीचे तुम्हारा महंगे हार खरीदने के सपने देखना ,
और एक गरीब का अपना सब कुछ बेचकर अपनी भूख मिटाना ,
हद्द है, है ना  ?
क्या ही फायदा होगा उस ख़ज़ाने का ,
जो मुस्कराहट न ला पायी एक उदासी से भरे चेहरे पे |
क्यों नहीं सोचते हो तुम उस सुकून के बारे में ,
जो मिलती है किसी अजनबी की मदद करके |
साफ़ है सब कुछ पानी की तरह ,
लेकिन फिर भी तुम्हारा उससे प्रदूषित करना 
और फिर अनजान बनना ,
हद्द है, है ना ?

1 comment

  • Bhot khoob

    Khushi jain

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