वो बेनाम, बदनाम, बेघर भिखारी

वो बेनाम, बदनाम, बेघर भिखारी
उनको भूली हुई है ये दुनिया हमारी
उनके बेरंग चेहरों की गहरी कहानी
नही सुन रही आदमीयत हमारी
उनके बचपन को बेवक्त कुछ हो गया
उनके बचपन से बचपन का धन खो गया
लोरियां, किस्से, पुस्तक ना बिस्तर मिले
कभी फर्श कोइ या पत्थर कहीं
कभी खंडहर कोइ घर हो गया
देखी हैं इनकी किस्मत ने राते कई
जिनमें मुह फेर कर ये जहान सो गया
जिसने दस - पाँच का कोइ सिक्का दिया
इनकी नजरों में वो देवता हो गया
ये वो किस्से हैं हम जिनको सुनते नहीं
जिन्दगी हैं ये वो हम जो जीते नही
ये भी मुस्तकबिल हैं मुल्क का अपने ही
शायद काबिल इन्हें हम समझते नहीं
क्यों ना सुनती इन्हें आदमीयत हमारी
ये बेनाम, बदनाम, बेघर भिखारी
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Street Kids'

5 comments

  • Bhut hi bdhiya mere bhai ..
    Ati uttam.
    ‘Likhna teri phchan h
    Kalam me teri jaan h.’

    Vishal chaudhary
  • बहुत ही शानदार पंक्तियां जो वास्तविकता को बयां करती हैं
    Chandra Prakash
  • ख़ूबसूरत शब्दों से मर्म पैदा किया है.

    Shashank pandey
  • हमारी कश्ती भी साहिल को लग जाएगी।
    गर और मजमा- ए- तमाशाही हो जाएं।।

    बहुत बढ़िया शुभम

    काशिफ अहमद
  • Incredible Writing. You guys should upload more and more poetry of this poet.

    Piyush Singh

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