रिमझिम बूंदे पड़ रही यहाँ पर, सब और फैले हैं वृक्ष कदम्ब के
बूढा बरगद ऊंघ रहा, अपनी जटाओं का आलम्ब ले।
और अन्धकार में डूब रहे ये भूतपूर्व पृथ्वीपतियों के नगर
धूल-धूसरित हो रहे मनुपुत्रों के स्वर्णिम आडम्बर।
बहती जलधारा घोल रही है उनके नगरों के भग्नावशेष को
टूटे निकेत स्वीकार रहे अब, प्रकृति के परिवेश को।
एक और प्रभावपूर्ण अध्याय पृथ्वी का, बन गया इतिहास है
प्रकृति उड़ा रही उपहास उनका, ऐसा होता आभास है।
परिवर्तन प्रति प्रतिबद्ध थे, तो प्रयाण के पथ क्यों अवरुद्ध थे?
बिना रिपु के वरण किया मृत्यु का, और कहते थे कि तुम अनिरुद्ध थे!
शैवालों में लिपटे मग्न हो ये विशाल मूर्तियों के भग्न हैं
और पास ही छिद्रित मानव मस्तक, मृदा में हो रहे संलग्न हैं।
हत्यारी बंदूकों की लंबी नलिकाओं में चींटियाँ कर रहीं भोजन का भण्डारण
अंततः मुक्त है पूरी पृथ्वी पर दौड़ लगाने को शशक और हिरण।
सूनी गलियों में भर बहा तनु रुधिर जो, वो होता क्रमशः प्रगल्भ और ठोस है
दिशाओं की गोद में लुप्त हो रहे अब वो युद्ध के उद्घोष हैं।
एकांत डुबकी लगा रहा आकाशगंगा में, सब और फैला यहाँ हर्ष है
पुनः प्रफुल्लित हो रही प्रताड़ित प्रकृति, तेरा विध्वंस यहाँ उत्कर्ष है।
बंद करो ये ‘त्राहि-त्राहि’ ओ मानवी आत्माओं, तुम यहाँ अदृश्य और अश्रव्य हो
नहीं आवश्यकता थी प्रकृति को कभी तुम्हारी, है स्वतः सृजित और भव्य जो।
मयूर का स्वर लग रहा ईश्वर का वर, वरण कर रहा वरुण के कल-कल नाद का
अव्यय है भव्य दृश्य का लावण्य, व्यतीत हो रहा व्यवधान विषाद का।
मानव और उसके अवशिष्टों से अब मुक्त हुआ ब्रह्माण्ड है
पाठ पढ़ा महत्त्वपूर्ण सब आक्रामक जीवों ने, दंड पाता है स्वतः ही, होता जो उद्दंड है।
चूर्ण हुआ अभिमान, धरा में पुनः आ गए प्राण, अब ये आनंद का आवास है
आलिंगन कर रहे समुद्र के तरंग-श्रृंग भूमि का, सब ओर शांति और उल्लास है।
आपकी कविता से आनंदित और आतंकित एक साथ होने का बोध होता है। उत्कृष्ट सौन्दर्य है आपकी रचना में।