Rishabh Goel
बाहर से कैसी दिखती हो, ये मैं कैसे कहूँ?
पर ये जो तुम्हारी आत्मा की सूरत मैं महसूस कर सकता हूँ,
तुम्हारी आवाज़ से जो एक सौम्य अपनत्व छलकता है, वो बहुत सुन्दर है।
वो कहते हैं कि तुम्हारी आँखे झील सी गहरी नहीं हैं, मुझे मालूम है, वो तालाबों सी हैं क्योंकि तुम चाह कर भी किसी को डूबने नहीं दोगी उनमें।
वो कहते हैं कि तुम्हारे बाल रेशम से नाज़ुक नहीं हैं, मुझे पता है, मैंने छू कर महसूस किया है उन्हें।
वो उलझे हैं, बिखरे हैं, घने हैं,जब भी लेटता हूँ तुम्हारी गोद में, अंदर तक शीतल कर देती है तुम्हारी ज़ुल्फों की छाँव।
वो कहते हैं कि तुम्हारी पिछली ज़िन्दगी के दाग तुम्हारे चेहरे पर साफ़ दिखाई पड़ते हैं,
तुम्हारे काले कल की दास्ताँ तुम्हारे चेहरे पर लिखते हैं।
अब तुम ही बताओ, दाग किसकी ज़िन्दगी में नहीं होते?
कोई दिल में छुपा के रखता है, किसी की आत्मा मैली होती है।
तुम साहसी हो, तुम्हारा दिल श्वेत है, तुम्हारी आत्मा निश्छल है।
तुम बहुत खूबसूरत हो, किसी पेंटिंग सी, किसी नज़्म की तरह।
मुझे पता है, तुम नज़रे झुकाकर शरमा रही हो और कुछ देर में मेरा हाथ झटक कर बोलोगी कि "अब बस भी करो। आँखे नहीं हैं, तब इतनी तारीफ करते हो, अगर देख पाते तो क्या मुझपर किताब ही लिख देते?"
पर सच बताऊँ, खूबसूरती देखने के लिए आँखों की ज़रुरत नहीं होती, आत्मा की होती है।
मैंने अपनी आत्मा से देखा है तुम्हें, तुम बहुत खूबसूरत हो।
Muchas gracias. ?Como puedo iniciar sesion?
सच में ख़ूबसूरत कविता
Amazing poem. Too good
Thanks for publishing