पत्तो की तेज़ सरसराहट, ये खामोशी में घुली हवा
जाना पहचाना सा है ये आलम,
जैसे रब्ब खुद हो एक गवाह...
भीड़ और दग़ाबाज़ी से दूर..
जब आ जाते हैं इस मुकाम पे
पड़ जाते हैं निशाँ कुछ, इस माटी के इंसान पे
ये फ़िज़ा, ये रौशनी, ये बूंदे किसी
खोये साथी की याद दिलाती है
मंज़िल जिसका पता भी नहीं है उसकी ओर ले जाती है
बंजारों की तरह ठिकाने छोड़ आये हैं कहीं दूर
अब बस ये राहें बेबसता कर ली मैंने मंज़ूर
बहते हैं जज्बात जैसे, कल कल बहता पानी
हर मोड़ पर मिल जाती हैं एक नयी कहानी..
सफर को जीना सीख लिआ, क्यूंकि मन्न बस्ता है नज़ारों में
चलता चल राही तू, तेरा दिल है कहीं इन् पहाड़ों में..\
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Travelling'
कश्मकश ज़िंदगी की,
पंक्तियाँ कवयित्री की….
उम्दा कविता।
Nyc lines