By वत्सल शर्मा
नन्हीं कलियां मुस्काईं
चैत संग बैसाखी आयीं
नवल-धवल बालियां गेहूं की,
गर्मी का संदेसा लायीं।
लहलहा उठे वृक्ष आम के
तरबूजे में लाली आयी
खरबूजे की बात ही क्या?
गन्ने रस की तरुणाई छायी।
बेल पुदीने की चंचलता
नींबू से मिल खिल आयी
लाओ भैय्या बरफ, कुल्फ़ी औ आइसक्रीम
ठण्ड करे जी को, देखो गर्मी आयी।
आतप की तो पड़ी मार है
सूरज दादा का भी ताप बढ़ाई
जेठ-आषाढ़ तो बिसर गये हम,
सावन बाद भी आग लगाई।
सर-सर चलती हवा भी न कम
धूल से कर ली हो जैसे सगाई
डरा-सता ढकेल कभी कहती,
मानसून अभी दूर है भाई।
बालमन है प्रसन्न आजकल
बस्ते ने भी नींद लगाई
दादी-काकी, नानी-बुआ से
मिलन घड़ी आयी, छुटियाँ भायीं।
गर्मी तो बड़ी अतरंगी
सर्वधर्म समभाव सबको सिखाई
नवरात, बैसाखी, गुड-फ्राइडे, ईद,
औ न जाने कितने त्यौहार संग लायी।
जेठ-आषाढ़ बुरे नाम के
इसने तो भादों-आश्विन तक दौड़ लगाई
मौज़ करो और जियो शान से,
तर-बतर करने, देखो गर्मी आयी।
देखो गर्मी आयी।
बेहद खूबसूरत पंक्ति है भाई
ऐसे ही आगे बढ़ते रहो ।
और लिखते रहो😍
well written bhaiya😍
और बेहतरीन कहना भी शायद कमतर होगा, बेहद उम्दा.,.,
Behatreen 😍…..and sooo relatable ❣️
Beautifully written…you have explained every bit of Indian summer…. scotching heat can also be described in such a beautiful way…❤️❤️
bhut umda likha bhai ,khoob darshaya summer ko💕💕
Absolutely spectacular rendition of Indian summers ❤
You are my most favourite poet in this whole wide world. 😻🌍❤
Sach mai bahut achcha likha hai Bhai😘
Bahut umda likha h bhai aap ne. God bless you. 💕💕💕
Aapne bachpan ki yaad dila di!
Bhut khoob Bhai ❤
You described Indian summer very well 💕