सुख का मंज़र- कोरोना – Delhi Poetry Slam

सुख का मंज़र- कोरोना

By सुनीला नारंग

दुख के बाद सुख का मंज़र ज़रूर आएगा
वक़्त वो नहीं रहा तो वक़्त ये भी गुज़र जाएगा।

मैं सोचती हूँ कैसा आ गया है वक्त
पर क्या सोचने से यहीं रुक जाएगा ये वक्त
नहीं, ऐसा ना कभी हुआ, ना हो पाएगा
वक़्त यूँ ही अपनी रफ्तार से, चलता चला जाएगा
दुख के बाद सुख का मंज़र ज़रूर आएगा, ज़रूर आएगा।

किसने सोचा था कि कोरोना सैलाब बनकर आएगा
और ये सैलाब इंसान को यूँ निगल जाएगा
परंतु वक्त बदलता है और फिर बदल जाएगा
क्योंकि परिवर्तन संसार का नियम है,
जो वक्त कल नहीं रुका, तो क्यों आज ठहर जाएगा
दुख के बाद सुख का मंज़र ज़रूर आएगा, ज़रूर आएगा।

लगता है किसी मकसद से आया है कोरोना
भला क्या मकसद हो सकता है, ज़रा सोचो ना
मैंने सोचा तो पाया,
इंसान ने नाहक ही प्रकृति को गंवाया
आखिर क्यो, इस पर मन में उठे कई सवाल,
वो सवाल क्या थे-
क्यों हम नष्ट कर चुके अपनी प्रकृति?
क्यों हम भूल चुके प्रेम और संस्कृति?
क्यों हम जल रहे ईर्ष्या और द्वेष में?
क्यों हम काट रहे और कट रहे कलेश में?
क्यों तिनका-तिनका बिखर गई इंसानियत?
क्यों सर पर चढ़ कर बोल रही हैवानियत?
शायद इन सवालों के जवाब में
कोरोना बनी प्रकृति दे रही है दस्तक।
सुनो इस दस्तक की आवाज़
अब क्या होगा, कोई तांडव या प्रकृति का नंगा नाच
ये तो वक्त ही बताएगा,
दुख के बाद सुख का मंज़र ज़रूर आएगा, ज़रूर आएगा।

जब प्रकृति अपना मुँह खोलेगी,
और निगल-निगल कर अपने दुश्मनों को
यूँ बोलेगी और करेगी अट्टहास-
"अब मैं तुझे ना छोडूंगी, मैं तेरा दम तोड़ूंगी"
एक क्षण को लगा, ठीक ही तो है
परंतु फिर डर गई, सहम गई, क्या होगा उसके बाद
उसके बाद इंसानियत करेगी फरियाद-
"बक्श दो, बक्श दो, रहम करो, रहम करो"
और फिर प्रकृति के रहम-ओ-करम से
इंसान की बस्ती फिर होगी आबाद
और वक्त इंसानियत का फिर से आ जाएगा,
दुख के बाद सुख का मंज़र ज़रूर आएगा, ज़रूर आएगा।

ऐ बंदे, तू प्रकृति के प्रकोप से मत डर
प्रकृति तेरी जननी है, तू इसकी रक्षा कर
वक्त आ गया है एक-जुट होने का
इंसान के मन में प्रेम का बीज बोने का
शायद इसीलिए सब कुछ रुक सा गया है,
थम सा गया है।
शायद इसीलिए आज का बाज़ार बंद सा पड़ा है
स्कूल बंद, दफ्तर बंद, सब कारोबार मंद सा पड़ा है
ना हमें कहीं पर जाना है,
और ना ही किसी को आना है
सब शून्य-शून्य सा लगता है
अब क्या करें, क्या ना करें, ये कौन हमें बताएगा?
दुख के बाद सुख का मंज़र ज़रूर आएगा, ज़रूर आएगा।

जब अपने ही अंतर्मन से प्रति उत्तर मिला,
अपने ही सवालों का,
तो समझ आया कि
अब बैठना-बिठाना होगा, अपनों के संग
अब जी को बहलाना होगा, अपनों के संग
अब रूठना और मनाना होगा, अपनों के संग
अब अपनों की ही बात होगी, अपनों के ढंग
अब वक़्त अपनों के ही संग बिताया जाएगा
दुख के बाद सुख का मंज़र ज़रूर आएगा, ज़रूर आएगा  ।

ये अपनेपन का सुखद अहसास
अब दूर नहीं, कहीं है आस-पास
अब प्रेम कोपलें फूट पड़ी हैं
हे मानव! अब तू हो ना उदास,
बस आगे बढ़ता चल, एक सकारात्मक सोच के साथ
शायद ये सोच, ये सुखद अहसास,
कोरोना ही लेकर आएगा, कोरोना ही लेकर आएगा
दुख के बाद सुख का मंज़र ज़रूर आएगा, ज़रूर आएगा।

वक़्त वो नहीं रहा तो वक़्त ये भी गुज़र जाएगा। 
दुख के बाद सुख का मंज़र ज़रूर आएगा।।

 


4 comments

  • Very well written. Tremendous poem

    Mohammedsaqib
  • Wah wah Kya baat hai 👌👏

    Pragnesh Chavda
  • Beautiful poetry.

    Shubham gangwar
  • dukh ke bad sukh ka manzar bhi aaega. wahh, bahot hi badhiya

    Abhishek Patel

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