बच्चा किसी गरीब का जल्दी बड़ा हो जाता है
दो वक्त के खाने के लिए वो धूप में जलता है
वो अपनी सांसों को भी गुब्बारों में भरकर बेचता है
रोटी के चार टुकड़े कर, परिवार में बांट देता है
खाली बर्तन में भूख को ठंडे चूल्हे में झोंक देता है
बच्चा किसी गरीब का जल्दी बड़ा हो जाता है
हम करते हैं अपने गमों की नुमाइश
वो चुपचाप अपने सारे गम पी जाता है
न डर है उसे दुनिया के तानों का
अपनी हंसी में अपने आंसू छिपा लेता है
बच्चा किसी गरीब का जल्दी बड़ा हो जाता है
करते हैं हम हज़ार फरमाइशें
वो अपने ख्वाबों का गला घोंट देता है
उम्मीदों से लड़कर अपने सपनों से रिश्ता तोड़ लेता है
जब मिल जाए पेट भर खाना उस दिन को ही त्यौहार समझ लेता है
बच्चा किसी गरीब का जल्दी बड़ा हो जाता है
डरता नहीं वो गरजते बादलों से
हवाओं के साथ दौड़ लगाता है
फुटपाथ को अपना सेज समझकर
धूप को अपनी चादर बना लेता है
बच्चा किसी गरीब का जल्दी बड़ा हो जाता है।
Thanks a lot🙏🙏
beautiful use of words to portray the sad reality. Amazing work.
Heart touching poem
Very Nice
Thanks a lot everyone…
💕🌹
काफी हृदय स्पर्शी कविता है,
और ऊंची उड़ान भरते रहो
Very beautiful and touching poem!
Thankyou so much for the lovely comments
Beautiful description
Seeing the difference positivelu