Street Children

By Priyanka Shakdwipee

 

बच्चा किसी गरीब का जल्दी बड़ा हो जाता है

दो वक्त के खाने के लिए वो धूप में जलता है

वो अपनी सांसों को भी गुब्बारों में भरकर बेचता है

रोटी के चार टुकड़े कर, परिवार में बांट देता है

खाली बर्तन में भूख को ठंडे चूल्हे में झोंक देता है

बच्चा किसी गरीब का जल्दी बड़ा हो जाता है

 

हम करते हैं अपने गमों की नुमाइश

वो चुपचाप अपने सारे गम पी जाता है

न डर है उसे दुनिया के तानों का

अपनी हंसी में अपने आंसू छिपा लेता है

बच्चा किसी गरीब का जल्दी बड़ा हो जाता है

 

करते हैं हम हज़ार फरमाइशें

वो अपने ख्वाबों का गला घोंट देता है

उम्मीदों से लड़कर अपने सपनों से रिश्ता तोड़ लेता है

जब मिल जाए पेट भर खाना उस दिन को ही त्यौहार समझ लेता है

बच्चा किसी गरीब का जल्दी बड़ा हो जाता है

 

डरता नहीं वो गरजते बादलों से

हवाओं के साथ दौड़ लगाता है

फुटपाथ को अपना सेज समझकर

धूप को अपनी चादर बना लेता है

बच्चा किसी गरीब का जल्दी बड़ा हो जाता है।

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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Street Kids'

11 comments

  • Thanks a lot🙏🙏

    Priyanka
  • beautiful use of words to portray the sad reality. Amazing work.

    Harshit
  • Heart touching poem

    Priyam Sinha
  • Very Nice

    Chetan Prakash Shakdweepiya
  • Thanks a lot everyone…

    Priyanka
  • 💕🌹

    Bhanupriya
  • काफी हृदय स्पर्शी कविता है,
    और ऊंची उड़ान भरते रहो

    हुकम राय शाकद्वीपी
  • Very beautiful and touching poem!

    Gaurav
  • Thankyou so much for the lovely comments

    Priyanka Shakdwipee
  • Beautiful description

    Namrata sharma
  • Seeing the difference positivelu

    Dinesh sharma

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