By
Yugesh Kumar
न योगी को सुना न ओवैसी को
मुझे और भी काम हैं
फ़िज़ूल वक़्त किसको
वो बोलते हैं
या बस बोल देते हैं
जीवन यापन कैसे चले
चलो ज़हर घोल देते हैं
हम भी तो जनता हैं
मासूम से भोले-भाले
जिस पडोसी की मीठी सेवइयां चखी
जिस पडोसी के मीठे लड्डू चखे
वो फिर मुह खोल देते हैं
और हम भाईचारे को तौल देते हैं
थोडा रोष जरूर है लोगों से
उनसे नहीं अपने लोगों से
एक अपील है सबसे
विचार कीजिये तब व्यवहार कीजिये
याद है कभी अंग्रेज़ आये थे
मालूम होता है की
ये कुछ नस्लें उनसे प्रभावित हैं
सोच अपनी दुरुस्त रखो
वो बोलते ही रहेंगे
तुम अपनी बात रखो
अरे इतने साल से पडोसी थे
अखलक को न समझ पाये
और वो जिन्हें जानते भी नही
उन्हें अपना रहनुमा मत समझो
बड़ी पुरानी सभ्यता है हमारी
फ़िज़ा में रंग सदभाव का रहा हैं
हमें तो गुलाब की तरह महकने की आदत है
काँटों से भला कौन डरा है/
मुझे और भी काम हैं
फ़िज़ूल वक़्त किसको
वो बोलते हैं
या बस बोल देते हैं
जीवन यापन कैसे चले
चलो ज़हर घोल देते हैं
हम भी तो जनता हैं
मासूम से भोले-भाले
जिस पडोसी की मीठी सेवइयां चखी
जिस पडोसी के मीठे लड्डू चखे
वो फिर मुह खोल देते हैं
और हम भाईचारे को तौल देते हैं
थोडा रोष जरूर है लोगों से
उनसे नहीं अपने लोगों से
एक अपील है सबसे
विचार कीजिये तब व्यवहार कीजिये
याद है कभी अंग्रेज़ आये थे
मालूम होता है की
ये कुछ नस्लें उनसे प्रभावित हैं
सोच अपनी दुरुस्त रखो
वो बोलते ही रहेंगे
तुम अपनी बात रखो
अरे इतने साल से पडोसी थे
अखलक को न समझ पाये
और वो जिन्हें जानते भी नही
उन्हें अपना रहनुमा मत समझो
बड़ी पुरानी सभ्यता है हमारी
फ़िज़ा में रंग सदभाव का रहा हैं
हमें तो गुलाब की तरह महकने की आदत है
काँटों से भला कौन डरा है/
(c)युगेश
The first line is just ❤❤❤
So nice and true