By Rizwan Champ
वो वहां बैठी पेड़ की छाव में,
बड़ी खूबसूरत सी वो शाम,
मेरा सर उसकी गोंद में,
उसकी जुल्फे मेरे माथे को छूती हुई,
उसकी कलाई मेरे हाथों में,
उंगलिया उँगलियों में कस्ती हुई,कभी उन्हें चूमती...
मेरी आँखे उसकी आँखों को तकती हुई।
मानो वो पल वही थम सा गया... हमारे लिए,
लेकिन अब ऐसा नहीं होता,
नहीं वो मुझसे रूठी नहीं है,
अब इन आँखों को छाव नहीं मिलती,
क्योंकि पेड़ बचे ही नहीं..।
-------------------------------------------------------------------------------------------
This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Mother Gaia'