सड़क किनारे बच्चे।

By Swati Mishra
चलो उस शहर में जहाँ हवाएँ कई राज छुपाती हैं
जहाँ नम पलखें गीत कई गुनगुनाती हैं
फिर भी आँखों की चमक राज कई बतलातीं हैं। 
वहाँ फिक्र नहीं है कल की नाही कल का पछतावा है
उन नन्ही आँखों में तो देखो जरा जहाँ पूरे विश्व का साया है
शिकायत नहीं उन्हें कोई ,नाही किसी झूठी आस में जीते हैं
मरते नहीं वे मगर जहर हर रोज ही पीते हैं
घर का पता मत पूछो उनसे दो वक्त की रोटी पर दिवाली है
नन्हे कंधों पर बोझ कुछ यूँ टंग जाते हैं 
बोतल की टनटन बोरियों से मानो उनका हाल बताते हैं।
स्कूल नहीं उनकी नसीब में पर पढ़ने के सपने हैं
 पाव है जमीन पर उनके पर आसमान में उड़ने के सपने हैं
बदनसीब और गरीब है न वे,नहीं खुदा के भी अपने हैं।
गलती नहीं उनकी बेहक बदनाम हो जाते हैं
 बंदूक, चरस ,गांजा ,अफीम उनकी ही गलियों से होकर जाते हैं
लोग जुर्म कहीं और है करते पर दोष इनके ही भाग्य जाते हैं।
राजनीति में भी पीछे नहीं, राजनेताओं के पसंदीदा खिलवाड़ हैं।
 यहां ढोल है इनकी बजती, किसी और  आंगन त्यौहार है
मौसम भी है वक्त से बदलता पर उनकी किस्मत में वह बात कहाँ ?
गर्मी में है झुलसते ,वर्षा में फिसल जाते हैं, शरद में जमती है उनकी साँसे
है उनकी यही कहानी यूं ही दफन हो जाते हैं।
 तुम्हारी आंखों में वे कहीं खटकती तो नहीं ?
 उनकी किस्मत पर तुम कहीं हँसते तो नहीं ?
उन्हें दो रोटी देने को तुम कहीं झिझकते तो नहीं ?
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Street Kids'

2 comments

  • Beautifully written

    Harshit
  • Thank you so much…

    Swati kumari mishra

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