By Heera Unnithan
२स्ता यहाँ कहीं चलता नहीं है
अगल बगल में रुका हि २हता है
न मुडता है, न खूम फिर के भेष बदल के आता है
न नया कुछ लाता है
न हसाता है
करवटें बदल बदल के
सूखी आंखों से हमें ही देख के
वह हमें ही हमारी ही याद दिलाता रहता है
ये रस्ता यहाँ से कहीं जाता नहीं है.
फिर उस दिन न वफा तक निभाता है
न हमारा जंग उसे दिखता है
सिर झुकाके कदम पे कदम पीछे चला जाता है
दूर निकल जाता है
नये रस्ते जो आते है, बड़े माल के बगल से, बोर्ड लगाता है, सिर्फ पैसा देने पे पारकिंग हो सकता है,
कायदे से यहाँ हर चीज़ होता है, जायज़ है, हम किसी को दिखाई नहीं देता है, हम यहाँ हैं हि नहीं है...
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Street Kids'
Thankyou for selecting my poem