रंग, खुशियाॅं और शब्द

BY SAUMYA SRIVASTAV

मै सकुचाई, संभली खड़ी थी

जब उनसे मुलाकात हुई

लेकिन पूर्ववत नहीं

कुछ अलग था

कुछ नया था

पहले प्रेम का एहसास 

लिपटे हुए असीम शांति के ओट से


जैसे किसी सूफी को मिल गया हो

प्रेयसी से मिलन का राज़

दिव्य जैसे किसी सुप्त मासूम के वदन पर

गिरा हो किरणों का साज

हृदय था आल्हादित

जैसे किसी विरहिणी को हुआ हो

पिया-मिलन का एहसास


कुछ रंग थे, कुछ खुशियाॅं थी

कुछ शब्द थे पन्नो पर झूलते हुए

जब मैंने किताबों को हृदय से लगाए

महसूस किया खुद को.....।

 

A selenophile who loves to read books and is often lost in her poetic world. She absolutely adores Hindi Classics, painting and psychological and philosophical discussions


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