नींद नहीं आती

 

By Subrata Kumar

 

सन्नाटे सर्दी की, भूखी सी इक रात

उसने आखें खोली, की तारों से बात,

सुना है की तुम सूरज से भी तेज हो

थोड़ी सी गर्मी, क्या मुझे दे सकते हो?

 

यहाँ फूटपाथ में मुझे नींद नहीं आती

यह लंबी बर्फीली रात, जल्दी नहीं जाती,

चादर तो एक ही है, जिसमें भाई मेरे सोते हैं

बताओ तो मेरे जैसे, क्यूँ दुनिया में होते हैं?

 

आज तो मैंने खाना भी न खाया

भाई को जो भूख ज़्यादा लगता है,

उफ़्फ़! यह हवा इतना ठंडा क्यूँ आया?

हाथ पैर मेरे, बर्फ हुआ जाता है।

 

अभी कुछ देर पहले आँख लगी ही थी

गाड़ियों की शोर ने फिर जागा दिया,

ठंड ने ऐसे ही नींद उड़ा रखी थी

बड़े लोगों ने, बचा कसर भी निकाल दिया।

 

रात और बढ्ने लगी, गाड़ियों का भी अब शोर नहीं

अच्छा हुआ, तुम्हारे मेरे बीच अब कोई और नहीं,

प्यारे तारे! अब तुम क्यूँ कोहरे में छुपते हो?

तुमसे कोई शिकायत न होगी, क्यूँ तुम मुझसे डरते हो?

 

अब बस! और सहा नहीं जाता,

मुझको अपने पास बुला लो

सच कहती हूँ, ज़्यादा न कुछ मांगूँगी

बस थोड़ी सी ठंड से बचा लो।

 

सब घेर खड़े हैं मुझको, क्या मैं इतनी प्यारी हूँ!

अब थोड़ी सी राहत है, अब मैं सो जाती हूँ,

तू क्यूँ रोती है माँ, मैं यहाँ पर अच्छी हूँ,

यहाँ पर ठंड नहीं लगती, न यहाँ मैं भूखी हूँ॥

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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Street Kids'

1 comment

  • Great! very touching

    NITIKA JAIN

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