नदी की पुकार

By Riya Patel
मैं बहती उस गाँव से,
जहाँ किसान बसा करते थे,
मेरे पावन जल से,
सभी तृप्त हुआ करते थे।
हरियाली सी छाई रहती मेरे किनारे पर,
बच्चे सभी खेला करते शोर मचा कर,
पशु, पक्षी और स्त्रियाँ आती रोज़ मुलाकात लेने,
नटखट लड़के करते मुझे बेहद परेशान।
मेरे निर्मल जल पर,
जब सूरज अपनी किरणे फैलाता,
मेरा सुंदर तल,
सुवर्ण के भांति चमकता।
पर पहले जैसे अब हालात नहिं हैं,
अब मानो मेरी आवश्यकता ही नहीं है।
सुन लो मेरी पुकार,
"ओ किसान, कहाँ चले गए हो तुम?"
अब मेरा यह पावन जल,
हो रहा है तबदील,
बन गई हूँ मैं एक नाले के समान,
तुम गाँव वालो की गंदगी का बोझ उठाते उठाते।
सुन लो मेरी पुकार,
"ऐ गाँव वासियों,
मुझे वापस दिलाओ वो सम्मान।"
सुन लो मेरी पुकार।
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Mother Gaia' 

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