By Ishaan Khan
काश मै एक चाय हो-जाओ
मैं किसी की आदत बन-जाओ
तुम मिठास अपने हिसाब सै डालो
जितनी भी डालो चुस्की मै पीं डालो
अपनों सै लेकर गैरों मैं बाँटो
अपने हिस्से का बिस्कुट मेरे हिस्सों मै डालो
कितनी भी मक्खी गिर जाए मुझमे
टांग पकड़ खीच कर निकाल डालो
सुबह की वक़्त या शाम या रात हो
हर खाने के बाद मुझे आदत बनालो
सिगरट के धुएं के साथ कहीं मुझे मत उड़ा देना
निकोटीन के चक्कर मै कॉफी का हाथ ना थामना
मैं पड़ा पड़ा पापड़ी बन जाउँगा
बस तुम
उसी तरह कोमल हाथो सै वो पापड़ी हटा कर एक चुस्की मारजाना
फिर मैं वो ही चाय बन-जाऊँगा
तुम्हें अपनी आदत बना-जाऊँगा ..
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'My Superpower'