मैं जल हूँ

By M S Mahawar

 

मैं जल हूँ,

जीवन प्रश्न है, तो मैं हल हूँ,

मैं गर आज हूँ, तो मैं कल हूँ

 

मैं जल हूँ,

मैं बहती नदी का बल हूँ,

मैं पेड़ पर लगा फल हूँ,

मैं धरा का आँचल हूँ,

मैं बरसता बादल हूँ,


मैं जल हूँ,

हे मनुष्य !

तू मौत है, मैं जीवन हूँ,

तू प्यास है, मैं सावन हूँ,

तू एक क्षण है, मैं कण-कण हूँ...

 

मेरे होने से तुझमें साँस है,

मेरे होने से कुएँ-तालाब है,

तुम्हारा वजूद मिट्टी है,

मेरा वजूद जीने की आस है…


पहाड़ चीर कर मेरा कण-कण तुम तक पहुँचा है,

हे मनुष्य,तू ने धरा की गहराइयों तक मुझे नोचा है,

मैंने तुम्हें साँसे दी है,

तुमने मुझे हर दिन धरा की गोद से भी खरोंचा है...

 

मैं जल हूँ,

हे मनुष्य

बन ना इतना समर्थ तू, कि समझे मुझे व्यर्थ तू,

मैं हूँ तो जीवन हैं, इस धरा को कर ना नरक तू,

 

तू ढूँढता रहेगा,

मैं एक दिन हवा हो जाऊँगा,

तू भी मिट जाएगा, जब मैं खो जाऊँगा…


मैं जल हूँ,

हे मनुष्य

क्या मेरे बिना जी पायेगा तू ?

मुझे खोकर, ख़ुद को ही मिटाएगा तू,

मैं नहीं तो धरती आग है, एक क्षण में जल जाएगा तू...

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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Mother Gaia' 

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