मैं और मेरे आत्मघाती विचार

By Nandini Kaushik

चलते-चलते इन राहों में

कुछ खोया ना कुछ पाया मैं |
सुबह से शाम और शाम से सुबह 
हर दिन युं ही गवाया मैं |
ए रब तेरी इस दुनिया को 
हाय! समझ न पाया मैं |
हर लम्हा है उम्मीद नई 
यह सोच हर पल बिताया मैं |
तेज़ चलती इस दुनिया का
मुकाबला कर न पाया मैं |
मोह के कच्चे धागों को समेटे 
चल न पाया मैं |
मन में हैं अरमान दबे
किसी से कह न पाया मैं |
शाम ढली दिन बीत गया 
अब भी कुछ कर न पाया मैं |
ले देख तेरी इस दुनिया से 
रुख़सत होकर तुझसे मिलने हूं आया मैं |

 -------------------------------------------------------------------------------------------

This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Trauma' 

4 comments

  • The Instant Smile this poem puts on your face shows the beauty of the poem and the poet, Really beautifully written’<3.

    Kashish Kataria
  • Waoo waoo🌸🌸

    Ajay saroha
  • Beutifully written!

    M S Mahawar
  • Beautifully written. ❤️

    Taruni Bajaj

Leave a comment

Please note, comments must be approved before they are published