By Rishika Mishra
बंद कर दो दरवाज़ों के पीछे
और लगा दो सौ ताले
कि कहीं गलती से भी उस बेबसी की आवाज़
बाहर ना सुन जाए।
आख़िर लोग क्या कहेंगे...
घुट के जीना,
रात के २ बजे , अकेले उठ कर बाथरूम की फ़र्श पर बैठ कर रोना
चाँदनी रात की तरह , दिमाग़ में उफनते लहर को
खुद से ही बातें करके नींद चैन खोना
आख़िर लोग क्या कहेंगे...
जब भी दिल ने कोई सहारा चाहा
या तोड़ कर सारी ज़ंजीरों को
चीख चीख कर दुनिया से ये कहना चाहा
की थक गयी हूँ मैं ,
अकेली सह सह कर ये सब
ज़रूरत है मुझे तुम्हारे सहारे की
दिमाग़ ने समझाया, चुप कर पगली ,
आख़िर लोग क्या कहेंगे...
एक दिन यूँही सुबह , जब उसने अपनी आँखें ना खोली,
दुनियावालों ने उसकी मेज़ ढूँढी और जेब टटोली
मिला एक छोटा सा ख़त, जिसमें वो कुछ यूँ बोली ,
“Dear mommy
Being depressed was neither a choice, nor a phase.
I gave up because my mind said it's too late.
I am sorry I couldn’t say it loud
Because I was constantly raised with the thoughts that
If I did
लोग क्या कहेंगे ...”
Simply amazing ❣️
Superb ! Keep writing.